आज वे सलाखों के पीछे है। शायद अपने आप को कोश रहे होंगे। उन्हें अपने काले
करतूतों की सजा मिली है। वह शक्स जो कभी बिहार में सत्ता और राजनीति के पर्याय माने जाते थे। लालू ही बिहार और
बिहार ही लालू। पिछड़ो, दलितों और
वंचितों के वे मसीहा माने जाते थे। उन्हें इस वर्ग का अपार स्नेह और समर्थन भी प्राप्त था। इसी जन समर्थन की बदौलत वे
बिहार में सत्ता के शिखर पुरुष भी बने। उन्होंने पिछ्ड़ो और दलितों के उत्थान का कम भी किया। हालांकि इसकी नीव रखने का कम कर्पूरी ठाकुर ने पहले ही शुरू कर दिया था। कर्पूरी ठाकुर की तैयार की गई जमीन को लालू प्रसाद जी ने अपने साथियों (राम विलास ,शरद यादव और नीतीश कुमार) के साथ मिलकर जरुर विस्तार दिया। सामंती जकडन और जातीय वर्चस्व वाले बिहार में पिछ्ड़ो, दलितों और आदिवासी हजारो सालो से सामंती शोषण से
निकलने को छटपटा रहे थे। ऐसे में जब लालू प्रसाद ने भूरा बाल साफ करो का नारा दिया तो वे अचानक से पिछड़ो के मसीहा बन गये । जनता ने उन्हें सत्ता के शीर्ष तक पहुचाया।
किन्तु सत्ता सुख ने उन्हें सामाजिक न्याय के रास्ते से भटका दिया। वे धीरे -धीरे
स्व केन्द्रित होने लगे। उन्होंने पिछ्ड़ो का सामाजिक उत्थान तो जरुर किया लेकिन उनके आर्थिक जरुरतो को या तो समझ नही
पाये
या फिर जानते हुय भी अनदेखा कर दिया। उनके चश्मे
की रोशनी अपने नाते रिश्तेदारों से आगे पहुचना बंद कर दिया। अब अराजकता ,अपहरण अपराध का दौर शुरू हो चुका था, जिसमे
उनके अपने एवं करीबी लोगो की भूमिका भी
संदेहास्पद रही। जिसे लालू ने
अनदेखा किया। बिहार पूरी दुनिया में पिछड़ेपन का प्रतीक बन गया। पंद्रह साल तक भी समय रहते न चेतने वाले लालू को नाराज जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। पिछले विधानसभा के चुनाव में नितीश कुमार के साथ गठबंधन से वह अपने बेटों को सदन पहुचाने में न सिर्फ कामयाब रहे बल्कि मंत्रीपद भी दिलाया, परन्तु बिना संघर्ष प्राप्त पद की कीमत बेटे ज्यादा समझ नही सके और सत्ता में वापसी का एक सुंदर मौका खो दिया. बहरहाल लोकसभा का चुनाव अपने पुरे शबाब पर है और भारतीय राजनीती की धुरी रहे लालू प्रसाद यादव रांची के बिरसा मुंडा कारागृह में अपने राजनैतिक भविष्य की चिंता में करवटे बदल रहे है। आज़ उनके राजनैतिक जीवन पर
ग्रहण लगता दिख रहा है। देखना है की इस मुश्किल समय से पार्टी को निकाल पाने में वे और उनके बेटे कितने कामयाब होते है?
( ये लेखक के अपने विचार हैं.)
2 comments:
सुप्रभात।
यह फिर से साबित करता है कि राजनिति में कुछ भी स्थायी नही होता। सिर्फ निजी स्वार्थ ही स्थायी होता है।
जी बिल्कुल सही कहा आपने। आज के परिपेक्ष्य में यही सही है।
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