Monday, October 7, 2019

मेरे घुमक्कड़ होने का अर्थ : राहुल पटेल



मेरे घुमक्कड़ होने का अर्थ : राहुल पटेल

यात्राएं प्राचीन काल से ही हमारे जीवन का अटूट हिस्सा रहीं हैं। इतिहास गवाह है कि दुनियाँ की विभिन्न सभ्यता और संस्कृतियों के विकास में यात्राओं की भूमिका अहम रही है। ह्वेनसांग-फाह्यान से लेकर इब्नबतूता तक और मार्कोपोलो से लेकर कोलम्बस और वास्कोडिगामा तक। हर युग में यात्रियों के दृढ़ संकल्प और साहस ने इतिहास में नये अध्याय जोड़े हैं। घुम्मकड़ों का मानना है यह दुनियाँ और पूरी सृष्टि एक खुला विश्वविद्यालय है, जिसकी खुली हसीन वादियाँ और अलग-अलग मिजाज और तहजीब के लोग खुली किताबों की तरह हैं। जरुरत है इन्हें पढ़ने के लिए एक बेहतर खोजी नजरिये की और एक सकारात्मक सोच की। आम धारणा है कि घुमक्कड़ी करने में ज्यादा पैसे की आवश्यकता होती है पर यात्रा करते हुए जाना कि यायावरी के लिए पैसे से ज्यादा जरुरी है।


जिन्दगी जीने का एक फकीराना अन्दाज और बेलौस जिन्दगी जीने की गहरी प्यास। फिर साधन तो जुट ही जाते हैं। जोखिम और कठिनाइयाँ तो संगी साथी बन साथ-साथ चलने लगती हैं। अपनी काठमांडू यात्रा के दौरान खट्टे मीठे दोनों ही तरह के अनुभव प्राप्त हुए। इससे पहले भी भारत के कई राज्यों में घूम चुका हूँ। परन्तु ये कई मायनों में उनसे बिल्कुल अलग था। सबसे पहले तो यह भारत से अलग एक नवीन लोकतांत्रिक देश था जहाँ अलग ही तरह की विषम परिस्थितियों का सामना करना था जैसे दुर्गम पहाड़ियां, हथौडा से कठमांडू तक का दिल दहलाने वाला पहाड़ी रास्ता, बरसात का मौसम, फोन का निष्क्रिय हो जाना आदि। परन्तु इस यात्रा में जो सबसे रोमांचित करने वाली बात थी वो थी अपनी खुद की नई रॉयल एनफील्ड बुलेट बाइक! हालांकि बाइक से जाने का निर्णय एक परेसानी का सबब भी साबित हो सकता था क्योकि प्रकृति जितनी खुबसूरत और आकर्षक है उतनी ही कठोर और निर्मम भी। परंतु राहुल सांकृत्यायन के घुम्मकड़ शास्त्र ने मेरे जैसे हजारों लोगों को देश-दुनियाँ को जानने-समझने के लिए घुम्मकड़ी के लिए प्रेरित किया है और अपने विद्यालयी जीवन मे पढ़ी किसी शायर की यह पंक्ति कि–"सैर कर दुनियाँ की गाफिल जिन्दगानी फिर कहाँ! जिन्दगानी गर रही तो यह जवानी फिर कहाँ !" मेरे घुमक्कड़ी स्वभाव को हमेशा प्रेरित करते है।
अभी मैं सकुशल वापस आ तो गया हूँ पर मन तो हमेशा प्राकृति और आध्यात्म के सानिध्य में ही रहने का है। अगली योजना पूर्वोत्तर तथा लेह-लद्दाख की है। पूर्वोत्तर मुझे शुरू से आकर्षित करता रहा है । पर कभी संयोग नही बन सका । संभवतः अगले वर्ष गंगटोक , कलिम्पोंग और दार्जिलिंग की यात्रा होगी। इसी वर्ष नवम्बर में गुजरात की यात्रा भी तय है जिसमें सोमनाथ और द्वारका जैसे अति विशिष्ट आध्यात्मिक स्थल शामिल है। बहरहाल मेरी यात्राओं की स्मृतियां मेरी खुद की कमाई हुई एक मात्र पूंजी है, एक अनमोल संचित कोष है जो कभी नष्ट नही होगा। इसमें बराबर इजाफा होता रहे मैं इस कोशिश में लगा रहूंगा ।