Wednesday, May 8, 2019

परीक्षा की रेस में अंकाकुल बच्चे!!!


परीक्षा के अंक न तो जीवन हैं और न ही जीवन का अंत! लेकिन हमारी आज की शिक्षा प्रणाली 'अंकाकुल' हो गई है, यानी अधिकतम अंकों को हासिल करने हेतु व्याकुल हो गई  है। जिसके जितने ज़्यादा अंक आये वह 'हवा हवाई' रहता है और जिसके कम अंक आये उसकी हवाइयां उड़ जाती हैं! स्कूल भी सामाजिक- सांस्कृतिक अंतरों को समझने में नाकाम रहता है

एक बच्चे को मैंने फोन किया और उसे बताया कि उसने बोर्ड के एग्जाम में 88% अंक हासिल किए हैं जो कि बहुत ही अच्छा है, परंतु यह सुनकर वह जोर जोर से रोने लगा. उसे इतने कम अंक की उम्मीद नहीं थी। उसने 90% से ज्यादा अंको की उम्मीद पाल रखी थी। वह बहुत जोर-जोर से रोए जा रहा था. उसे लग रहा था की उसकी सारी मेहनत बेकार हो गई है । वहीं दूसरी तरफ एक बच्चा पेरेंट्स मीटिंग में अपने अभिभावक के सामने सिर्फ इसलिए रो पड़ा क्योंकि वह अपने अभिभावकों के उम्मीदों पर स्वयं को खरा उतरता नहीं देख पा रहा था। उसने 8वी के यूनिट टेस्ट में बहुत अंक प्राप्त किये थे।
आपको ऐसे कई उदाहरण रोजमर्रा के जीवन में हमारे यहां आस-पास मिल जाएंगे। मैं अभी तक यह समझ नहीं पाया की इम्तिहान, एग्जाम, परीक्षा, पोजीशन, रैंक, परसेंटेज, पोजिशन ग्रेड आदि का असल जिंदगी से कोई जुड़ाव है भी या नहीं। कोई भी परीक्षा अंतिम नहीं होती, अभिभावक इसे खुद भी समझे और अपने बच्चों को भी समझाएं । असफलता का अर्थ कदाचित 'आत्महत्या' नहीं है । असफलता तो सफलता की नई सीढ़ी है जिसे लाखों लोगों ने अपने कर्म के बदौलत सिद्ध किया है।
डॉ. राहुल पटेल